ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्र प्रभा मुष्ट पुष्ट श्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्न सारेन्द्र निर्माण नव भूषण भूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:।
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सरस्वती मंत्र-२
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रा वृता |
या वीणा वरदण्ड मंडित करा, या श्वेत पद्मासना ||
या ब्रह्मा अच्युत शंकर प्रभृतिभि: देवै: सदा वन्दिता |
सा माम् पातु सरस्वति भगवति निःशेष जाड्यापहा ||
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्याम् जगद्व्यापिनीम् |
वीणा पुस्तक धारिणीम् अभयदाम् जाड्यान्धकारापाहाम् ||
हस्ते स्फाटिक मालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम् |
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धि प्रदाम् शारदाम् ||
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